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है इश्वर ,..मेने कभी देखा नहीं है आप को ..हा पर आप हो इसका एहसास रहता है ..लोग कहते है आप हर किसी के दिल में रहते है … पर कुछ तो कहते है .. मेरा दिल पत्थर का है .. पत्थर की तो आप की मूरत भी रहती है ..पर वही लोग कहते है इसमें आप रहते है ..:बड़ा उलझा हुआ रहता हु में ..अक्सर दुसरो को सुलझाने में लगा रहता हु में ..”
..बचपन में भले ही गणित में कमजोर थे ..पर अब रिश्तो का हिसाब किताब आने लगा है ..
एक दिन पिता जी ने कहा ..पढाई छोडो और अपना खर्च खुद उठाओ .. ..कही सुना था की में बहोत खर्चीला हो गया हु अब “ ..बड़े भाई साहब कहते है ..के दाल का क्या भाव चल रहा है .. अब में समझा किउ छोटी भेहन पूछने लगी है ..के कितनी रोटी बनाऊ”
..इक दिन पिता जी को मेने कुछ पेसे देने चाहे ..किसी ने कहा के बहोत पेसे वाला हो गया है तू …”
बड़ा उलझा हुआ सा रहता हु में ..दुसरो को सुलझाने में ………..”
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